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गीता प्रेस, गोरखपुर >> सन्ध्या,सन्ध्या-गायत्रीका महत्व और ब्रह्मचर्य

सन्ध्या,सन्ध्या-गायत्रीका महत्व और ब्रह्मचर्य

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1149
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत है सन्ध्या,सन्ध्या-गायत्रीका महत्व और ब्रह्मचर्य....

Sandhaya Sandhaya Gayatri Ka Mahattav Aur Brahmacharya a hindi book by Gitapress - सन्ध्या,सन्ध्या-गायत्रीका महत्व और ब्रह्मचर्य - गीताप्रेस

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

निवेदन

भारतीय संस्कृति में मनुष्य-जीवनको चार आश्रमों में बाँटा गया है—ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। यों तो सभी आश्रम-धर्मों का श्रद्धा-विश्वासपूर्वक, नियमानुसार दृढ़तापूर्वक पालन करने का विशेष महत्त्व है। किंतु उन सबमें ब्रह्मचर्य की महिमा सर्वाधिक है। ब्रह्मचर्य के पालन से बल, बुद्धि, तेज एवं आयु की वृद्धि, आरोग्य की प्राप्ति, लोक-परलोक में सुख-शान्ति और परमात्मा की प्राप्ति तक सम्भव है। ब्रह्मचर्य-पालन के महत्त्व के साथ ही सन्ध्योपासन और गायत्री-उपासना की भी बड़ी महिमा है। गायत्री उपासना वस्तुतः परब्रह्म परमात्मा की ही उपासना है। इसकी नित्यप्रति उपासना द्वारा सभी प्रकार के सांसारिक अभ्युदय के साथ मनुष्य-जीवन के परम लक्ष्य ‘आत्मकल्याण’ को भी प्राप्त किया जा सकता है।
भारतीय संस्कृति और धर्म-विधान के अनुसार यज्ञोपवीतधारी द्विजमात्र (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य)—को नित्य-नियमित दो समय तो प्रातः-सायं सन्ध्योपासन अवश्य ही करना चाहिये। ‘स्व-कल्याण’ के साथ देश, जाति और विश्व-मंगल के लिये गायत्री-उपासना एवं सन्ध्योपासन द्वारा परमात्मा की पूजा नित्यप्रति बहुत आवश्यक है।

ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका द्वारा ‘ब्रह्मचर्य’ और ‘सन्ध्या-गायत्री’ के महत्त्व पर दो अलग-अलग उपयोगी पुस्तकों का प्रणयन किया गया था, जो अबतक गीताप्रेस से प्रकाशित हो रही थीं, जिन्हें श्रद्धालु पाठकों द्वारा पर्याप्त सम्मान भी मिला। अबतक प्रकाशित उन दोनों ही पुस्तकों के साथ ‘सन्ध्योपासन-विधि’ जो अलगसे प्रकाशित थी—तीनों को अब एक में ही प्रकाशित करने का निर्णय जनहित में लिया गया है, जो ‘सन्ध्या, सन्ध्या-गायत्री का महत्त्व और ब्रह्मचर्य’ नाम से यहाँ प्रस्तुत है। एक-दूसरे से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण विषयों का एक ही पुस्तक में समावेश होने से आशा है, यह सभी के लिये अधिक सुविधाजनक और उपयोगी सिद्ध होगी।


-प्रकाशक


अथ संध्या



प्रातःकाल और मध्याह्न-संध्या के समय पूर्वकी ओर तथा सायंकाल की संध्या के समय पश्चिम की ओर मुख करके शुद्ध आसनपर बैठकर तिलक करे।
नीचे लिखे मन्त्र को पढ़कर शरीर पर जल छिड़के।


ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।


दाहिने हाथ में जल लेकर यह संकल्प पढ़े; संवत्सर, मास, पक्ष, तिथि, वार, गोत्र तथा अपना नाम उच्चारण करे। ब्राह्मण हो तो ‘शर्मा’ क्षत्रिय हो तो ‘वर्मा’ और वैश्य हो तो नाम के आगे ‘गुप्त’ शब्द जोड़कर बोले।

ॐ तत्सदद्यैतस्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशान्तर्गते पुण्यक्षेत्रे कलियुगे कलिप्रथमचरणे अमुकसंवत्सरे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रोत्त्पन्नोऽमुकशर्माहं ममोपात्तदुरितक्षयपूर्वकं श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं प्रातः (मध्याह्न अथवा सायं) संध्योपासनं कर्म करिष्ये।


नीचे लिखे विनियोगको पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े।

पृथ्वीति मन्त्रस्य मेरुपृष्ट ऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मो देवता आसने विनियोगः।।

नीचे लिखे मन्त्र को पढ़कर आसनपर जलके छींटे दे।

ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्।।


फिर बायें हाथ में बहुत-सी कुशा लेकर और दाहिने हाथ में तीन कुशा लेकर पवित्री धारण करे, इसके बाद ‘ॐ’ के साथ गायत्री-मन्त्र पढ़कर चोटी बाँध ले और ईशान दिशाकी ओर मुख करके आचमन करे।

नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वीपर जल छोड़ दे।


ऋतं चेति त्र्यृचस्य माधुच्छन्दसोऽघमर्षण ऋषिरनुष्टुप् छन्दो भाववृत्तं दैवतमपामुपस्पर्शने विनियोगः।

नीचे लिखे मन्त्र को पढ़कर पुनः आचमन करे।

ॐ ऋतं च सत्यं चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत। ततो रात्र्यजायत। ततः समुद्रो अर्णवः। समुद्रादर्णवादधिसंवत्सरो  अजायत। अहोरात्राणि विदधद् विश्वस्य मिषतो वशी। सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वकल्पयत्।
दिवं च पृथवीं चान्तरिक्षमथो स्वः।।

तदनन्तर ‘ॐ’ के साथ गायत्री-मन्त्र पढ़कर रक्षा के लिये अपने चारों ओर जल छिड़के।
नीचे लिखे एक-एक विनियोगको पढ़कर पृथ्वीपर जल छोड़ता जाय अर्थात् चारों विनियोगोंके लिये चार बार जल छोड़े।

ॐकारस्य ब्रह्मा ऋषिर्गायत्री छन्दोऽग्निर्देवता शुक्लो वर्णः सर्वकर्मारम्भे विनियोगः।। सप्तव्याहृतीनां विश्वामित्रजमदग्निभरद्वाज-गौतमात्रिवसिष्ठकश्यपा ऋषयो गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहतीपंक्ति-त्रिष्टुब्जगत्यश्छन्दांस्यग्निवाय्वादित्यबृहस्पतिवरुणेन्द्विश्वेदेवा देवता अनादिष्टप्रायश्चित्ते प्राणायामे विनियोगः। गायत्र्या विश्वामित्रऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवताग्निर्मुखमुपनयने प्राणायामे विनियोगः।। शिरसः प्रजापतिर्ऋषिस्त्रिपदा गायत्री छन्दो ब्रह्माग्निवायुसूर्या देवता यजुः प्राणायामे विनियोगः।।

फिर आँखे बंद करके नीचे लिखे मन्त्र से तीन बार प्राणायाम करे। पहले अंगूठेसे दाहिना नथुना बंदकर बायें नथुने से वायु को अंदर खींचे और ऐसा करता हुआ नाभिदेश में नीलकमलदल के समान नीलवर्ण चतुर्भुज भगवान् विष्णु का ध्यान करे, यह पूरक प्राणायाम है। इसके बाद अंगूठे और अनामिका से दोनों नथुने बंद करके वायुको अंदर रोक ले। यों करते हुए हृदय में कमलके आसनपर विराजमान, रक्तवर्ण चतुर्मुख ब्रह्माका ध्यान करे, यह कुम्भक प्राणायाम है। अन्नतर अंगूठा हटाकर दाहिने नथुने से वायु को धीरे-धीरे बाहर निकाल दे। इस समय त्रिनेत्रधारी शुद्ध श्वेतवर्ण शंकरका ललाटमें ध्यान करे, यह रेचक प्राणायाम है नीचे लिखे मन्त्र का  तीनों ही प्राणायाम के समय तीन-तीन बार या एक-एक बार जप करने का अभ्यास करना चाहिये।

ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहिं धियो यो नः प्रचोदयात्। ॐ आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम्।।

(प्रातःकालका विनियोग और मन्त्र)


नीचे लिखे विनियोगको पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़ दे।

सूर्यश्च मेति ब्रह्मा ऋषिः प्रकृतिश्छन्दः सूर्यो देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः।।

नीचे लिखे मन्त्र को पढ़कर आचमन करे।

ॐ सूर्यश्च मा मन्युश्च मन्युपतयश्च मन्युकृतेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्ताम्। यद्रात्र्या पापमकार्षं मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्भया्मुदरेण शिश्रा रात्रिस्तदवलुम्पतु। यत्किञ्च दुरितं मयि इदमहं माममृतयोनौ सूर्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा।।

(मध्याह्न का विनियोग और मन्त्र)

नीचे लिखे विनियोग को पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़ दे।

आपः पुनन्ति्वति विष्णुर्ऋषिरनुष्टुप्छन्द आपो देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः।।

नीचे लिखे मन्त्र को पढ़कर आचमन करें।

ॐ आपः पुनन्तु पृथिवीं पूता पुनातु माम्। पुनन्तु ब्रह्मणस्पतिर्ब्रह्मपूता पुनातु माम्। यदुच्छिष्टमभोज्यं च यद्वा दुश्चरितं मम। सर्वं पुनन्तु मामापोऽसतां च प्रतिग्रहँस्वाहा।।

(सांयकाल का विनियोग और मन्त्र)

नीचे लिखे विनियोग को पढ़कर पृथ्वीपर जल छोड़ दे।

अग्निश्च मेति रुद्र ऋषिः प्रकृतिश्छन्दोऽग्निर्देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः ।।

नीचे लिखे मन्त्र को पढ़कर आचमन करे।

ॐ अग्निश्च मा मन्युश्च मन्युपतयश्च मन्युकृतेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्ताम् यदह्ना पापमकार्षं मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्भ्यामुदरेण शिश्ना अहस्तदवलुम्पतु। यत्किञ्च दुरितं मयि इदमहं माममृतयोनौ सत्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा।।

नीचे लिखे विनियोगको पढ़कर पृथ्वीपर जल छोड़ दे।

आपो हि ष्ठेत्यादित्र्यृचस्य सिन्धुद्वीप ऋषिर्गायत्री  छन्द आपो देवता मार्जने विनियोगः।।

इसके उपरान्त नीचे के मन्त्रों द्वारा तीन कुशोंसे मार्जन करे, कुशोंके अभावमें तीन उंगलियों से करे, सात पदोंसे सिरपर जल छोड़े। आठवें से भूमि पर  और नवें पदसे फिर सिरपर मार्जन करे।

ॐ आपो हि ष्ठा मयो भुवः। ॐ ता न ऊर्जे दधातन। ॐ महे रणाय चक्षसे। ॐ यो वः शिवतमो रसः। ॐ तस्य भाजयतेह नः। ॐ उशतीरिव मातरः। ॐ तस्मा अरं गमाम वः। ॐ यस्य क्षयाय जिन्वथ। ॐ आपो जनयथा च नः।

नीचे लिखे विनियोग को पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़ दे।


द्रुपदादिवेत्यस्य कोकिलो राजपुत्र ऋषिरनुष्टुप्छन्द आपो देवता सौत्रामण्यवभृथे विनियोगः।।

दाहिने हाथ में जल लेकर नीचे लिखे मन्त्र को तीन बार पढ़े, फिर उस जल को सिरपर छिड़क दे।

ॐ द्रुपदादिव मुमुचानः स्विन्नः स्नातो मलादिव। पूतं पवित्रेणेवाज्यमापः शुन्धन्तु मैनसः।।

नीचे लिखे विनियोग को पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़ दे।

अघमर्षणसूक्तस्याघमर्षण ऋषिरनुष्टुप्छन्दो भाववृत्तो देवता अश्वमेधावभृथे विनियोगः।।

दाहिने हाथ में जल लेकर उसे नाक से लगाकर श्वास आते या जाते समय एक बार या तीन बार नीचे लिखे मन्त्र को पढ़कर जल पृथ्वीपर छोड़ दे।

ॐ ऋतं च सत्य चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत। ततो रात्र्यजायत। ततः समुद्रो अर्णवः। समुद्रादर्णवादधिसंवत्सरो अजायत। अहोरात्राणि विदधद्विश्स्य मिषतो वशी। सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत्। दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्वः।।

नीचे लिखे विनियोगको पढ़कर पृथ्वीपर जल छोड़ दे।

अन्तश्चरसीति तिरश्चीन ऋषिरनुष्टुप्छन्द आपो देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः।।

नीचे लिखे मन्त्र को पढ़कर आचमन कर ले।


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